भगवान शिव को जब पता चलता है तो वह दक्ष और उसके यज्ञ को नष्ट कर देते हैं। शिव सती के वियोग को नहीं सह पाते हैं और उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर प्राणों को त्यागने पर उन्हें हजार वर्षों तक कोयल बनने का शाप देते हैं। देवी सती कोयल बनकर हजारों वर्षों तक भगवान शिव को पुन: पाने के लिए तपस्या करती हैं। उनकी तपस्या का फल उन्हें पार्वती रूप में शिव की प्राप्ति के रूप में मिलता है। तब से कोकिला व्रत की महत्ता स्थापित होती है।
इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही शिवजी का दूध और गंगाजल के साथ अभिषेक करें।
वह शिव से हठ करके दक्ष के यज्ञ पर जाकर पाती हैं, कि उनके पिता ने उन्हें पूर्ण रुप से तिरस्कृत किया है। दक्ष here केवल सती का ही नही अपितु भगवान शिव का भी अनादर करते हैं उन्हें अपशब्द कहते हैं। सती अपने पति के इस अपमान को सह नही पाती हैं और उसी यज्ञ की अग्नि में कूद जाती हैं। सती अपनी देह का त्याग कर देती हैं।
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वहां पहुंच कर देवी सती को मान नहीं मिला और वहां उन्होंने भगवान शिव का अपमान होते देखा। इससे आहत होकर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में आहुति दे दी।
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व्रत के दौरान दिनभर उपवास रखें और शाम को पूजा और आरती के बाद फलाहार करें।
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कोकिला व्रत क्या है? पार्वती जी ने कैसे पाया शिव जी को? जानिए विधि, महत्व और कथा
व्रत करने वाले को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान करें तो सबसे अच्छा होता है।
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जब कृष्ण जी ने ये सुना तो भागते हुए आये और उन्होंने भी मोर को प्रेम से गले लगा लिया और बोले हे मोर, तू कहा से आया हैं।...
इस व्रत को करने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
कोकिला व्रत मुख्य रूप से स्त्रियों द्वारा रखा जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सौभाग्य में वृद्धि प्राप्त करना और दांपत्य जीवन के सुख को पाना है। विवाहित स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं दोनों ही इस व्रत को करती हैं। कोकिला व्रत करने से योग्य पति की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और विवाह शीघ्र होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को भी अन्य सभी व्रतों की तरह ही नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है।